विवाहित बेटी भी अनुकम्पा नियुक्ति की हकदार-इलाहाबाद हाईकोर्ट


अनुकम्पा नियुक्ति पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया है। हाईकोर्ट ने कहा कि

" विवाहित बेटी भी अनुकंपा पर नियुक्ति की हकदार है। बेटियों के विवाहित होने से अनुकंपा नियुक्ति देने से इनकार नहीं किया जा सकता."

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) देवरिया को निर्देश जारी किया कि 

"वह अपीलकर्ता की अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर फिर से विचार करें और आठ सप्ताह के भीतर निर्णय लें।"

 यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता एवं न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की खंडपीठ ने चंदा देवी की विशेष अपील पर दिया है।

➡️ संक्षेप में मामला-

देवरिया निवासी चंदा देवी के पिता संपूर्णानंद पांडेय पूर्व प्राथमिक विद्यालय गजहड़वा, ब्लॉक बनकटा, तहसील भाटपाररानी में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। सेवा के दौरान 2014 में उनकी मृत्यु हो गई। चंदा देवी ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया। दिसंबर 2016 में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने उनके आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह विवाहित बेटी हैं, इसलिए वह शासनादेश चार सितंबर 2000 के अनुसार अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र नहीं हैं। चंदा देवी ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी।

एकलपीठ ने मई 2025 में उनकी याचिका खारिज कर दी। एकल पीठ ने माना कि विवाहित बेटी भी पात्र है, लेकिन चंदा देवी यह साबित नहीं कर पाईं कि उनके पति बेरोजगार हैं और वह अपने पिता पर आश्रित थी। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि उनके पिता का निधन 2014 में हुआ था। अब लगभग 11 साल बीत चुके हैं। ऐसे में यह दावा विचार योग्य नहीं है।

चंदा ने एकल पीठ के खिलाफ विशेष अपील दाखिल की। पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने चंदा देवी के आवेदन को सिर्फ इस आधार पर खारिज किया था कि वह विवाहित बेटी है। उन्होंने पिता पर निर्भरता का आधार नहीं लिया था। ऐसे में एकलपीठ का यह कहना कि उन्होंने निर्भरता साबित नहीं की उचित नहीं है। 

खंडपीठ ने स्मृति विमला श्रीवास्तव बनाम उप्र राज्य में स्पष्ट किया है कि पुत्री का विवाहित होना अनुकम्पा नियुक्ति में बाधा नहीं है। खंडपीठ ने यह भी कहा कि याची ने दावा खारिज होने के तुरंत बाद ही कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इसलिए देरी के आधार पर याची को लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने चंदा देवी की विशेष अपील स्वीकार कर ली।

➡️ स्मृति विमला श्रीवास्तव बनाम उप्र राज्य

विवाह के पहलू पर विचार करते हुए, खंडपीठ ने निम्नलिखित निर्णय दिया:

"विवाह का पहचान से कोई निकट संबंध नहीं है और न ही होना चाहिए। एक महिला के रूप में उसकी पहचान उसके वैवाहिक संबंध के बाद भी और उसके बावजूद भी बनी रहती है। इसलिए, समय आ गया है कि न्यायालय इस बात पर सकारात्मक रूप से ज़ोर दे कि यदि राज्य को संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में निहित समानता के मूल सिद्धांत के अनुरूप कार्य करना है , तो वह विवाहित पुत्रियों के साथ भेदभाव नहीं कर सकता, उन्हें क्षैतिज आरक्षण के लाभ से वंचित कर सकता है, जो कि पुत्र को उसकी वैवाहिक स्थिति पर ध्यान दिए बिना उपलब्ध कराया जाता है।"

➡️ श्रीमती रंजना मुरलीधर अनेराव बनाम महाराष्ट्र राज्य10 

यही विचार बॉम्बे उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने श्रीमती रंजना मुरलीधर अनेराव बनाम महाराष्ट्र राज्य10 मामले में व्यक्त किया था, जहाँ यह माना गया था कि लाइसेंस धारक की मृत्यु के बाद खुदरा केरोसिन लाइसेंस प्रदान करने के लिए विवाहित पुत्री को शामिल न करना न्यायोचित नहीं था। बॉम्बे उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने निम्नलिखित निर्णय दिया:

"विवाहित पुत्री का यह बहिष्कार किसी तर्क या अन्य न्यायोचित मानदंड पर आधारित प्रतीत नहीं होता है। किसी पुत्री का विवाह, जो लाइसेंस धारक की कानूनी प्रतिनिधि है, लाइसेंस धारक की मृत्यु पर उसके नाम पर लाइसेंस हस्तांतरण के मामले में उसके लिए अहितकर नहीं माना जा सकता। भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत किसी भी व्यापार या व्यवसाय को करने का नागरिक का अधिकार सुरक्षित है। अनुच्छेद 19(6) के तहत किसी भी व्यापार या व्यवसाय को करने के लिए आवश्यक व्यावसायिक या तकनीकी योग्यताओं के संबंध में उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। इसी प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 15 द्वारा लैंगिक भेदभाव निषिद्ध है। 1979 के लाइसेंसिंग आदेश में "परिवार" अभिव्यक्ति के दायरे से विवाहित पुत्री का बहिष्कार न केवल अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) द्वारा गारंटीकृत अधिकार का भी उल्लंघन करता है ।"

       इस प्रकार विवाहित पुत्री भी अनुकम्पा नियुक्ति की हकदार है.

आभार 🙏👇


प्रस्तुति 

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली )

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