उत्तर प्रदेश में खाद्य सुरक्षा कानून सख्ती से लागू कराना जरूरी
देश में उपभोक्ता की स्वास्थ्य सुरक्षा बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 पारित किया गया. खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 को 23 अगस्त, 2006 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई, और इसे सामान्य जानकारी के लिए प्रकाशित किया गया है: -
खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 संख्या 34, 2006।
यह अधिनियम खाद्य से संबंधित कानूनों को समेकित करने तथा खाद्य पदार्थों के लिए विज्ञान आधारित मानक निर्धारित करने, उनके विनिर्माण, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात को विनियमित करने, मानव उपभोग के लिए सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण की स्थापना करने के लिए बनाया गया है।
* सील बंद सामान बेचने के नियम -
उपभोक्ताओं के हित में केंद्र सरकार ने कानून पारित कर घटिया खाद्य सामग्री बेचने पर रोक लगाने के लिए कड़े नियम बनाए हैं। इसके तहत ठेलेवाले हों या दुकानदार, सभी को सील बंद सामान बेचना है।
बिना लाइसेंस के दुकान लगाने पर छह लाख रुपए तक जुर्माना या सात साल सजा हो सकती है। आम आदमी अर्थात आम उपभोक्ता के हित में यह कानून निम्न विशेष धाराओं में विशेष प्रावधान करता है. जो कि निम्न लिखित हैं -
1-धारा 59: असुरक्षित भोजन के लिए दण्ड।
कोई भी व्यक्ति जो स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा मानव उपभोग के लिए किसी ऐसे खाद्य पदार्थ का विनिर्माण या भंडारण या बिक्री या वितरण या आयात करता है जो असुरक्षित है, तो वह दंडनीय होगा,-
1-जहां ऐसी विफलता या उल्लंघन के परिणामस्वरूप क्षति नहीं होती है, वहां कारावास की अवधि एक लाख रुपये तक हो सकती है;
2-जहां ऐसी विफलता या उल्लंघन के परिणामस्वरूप कोई गैर-गंभीर चोट नहीं होती है, वहां एक वर्ष तक की अवधि के कारावास और एक लाख रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है;
3-जहां ऐसी विफलता या उल्लंघन के परिणामस्वरूप गंभीर चोट लगती है, वहां छह वर्ष तक का कारावास और पांच लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है;
4-जहां ऐसी विफलता या उल्लंघन के परिणामस्वरूप मृत्यु हो जाती है, वहां कारावास की सजा दी जाएगी जो सात वर्ष से कम नहीं होगी, परंतु आजीवन कारावास तक बढ़ाई जा सकेगी और जुर्माना भी दिया जाएगा जो दस लाख रुपये से कम नहीं होगा।
2-धारा 65: उपभोक्ता की चोट या मृत्यु की स्थिति में मुआवजा
(l) इस अध्याय के अन्य उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यदि कोई व्यक्ति स्वयं या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी खाद्य पदार्थ का विनिर्माण या वितरण या विक्रय या आयात करता है, जिससे उपभोक्ता को क्षति पहुंचती है या उसकी मृत्यु हो जाती है, तो न्यायनिर्णायक अधिकारी या, जैसा भी मामला हो, न्यायालय के लिए यह वैध होगा कि वह उसे पीड़ित व्यक्ति या पीड़ित के विधिक प्रतिनिधि को निम्नलिखित राशि का प्रतिकर देने का निर्देश दे-
1-मृत्यु की स्थिति में पांच लाख रुपये से कम नहीं;
2-गंभीर चोट के मामले में तीन लाख रुपये से अधिक नहीं; तथा
3-चोट के अन्य सभी मामलों में एक लाख रुपए से अधिक नहीं: बशर्ते कि मुआवजा घटना की तारीख से शीघ्रातिशीघ्र और किसी भी स्थिति में छह माह के बाद नहीं दिया जाएगा: आगे यह भी प्रावधान है कि मृत्यु की स्थिति में, घटना के तीस दिन के भीतर निकटतम संबंधी को अंतरिम राहत दी जाएगी।
2) जहां किसी व्यक्ति को किसी ऐसे अपराध का दोषी ठहराया जाता है, जिसके कारण गंभीर क्षति या मृत्यु हो सकती है, वहां न्यायनिर्णायक अधिकारी या न्यायालय दोषी ठहराए गए व्यक्ति का नाम और निवास स्थान, अपराध और अधिरोपित शास्ति को अपराधी के व्यय पर ऐसे समाचारपत्रों में या ऐसी अन्य रीति से प्रकाशित करवा सकेगा, जैसा न्यायनिर्णायक अधिकारी या न्यायालय निर्दिष्ट करे और ऐसे प्रकाशन का व्यय दोषसिद्धि पर होने वाले व्यय का भाग समझा जाएगा और वह जुर्माने के समान ही वसूल किया जा सकेगा।
(3) न्यायनिर्णायक अधिकारी या न्यायालय,—
उपभोक्ता को गंभीर चोट लगने या मृत्यु होने की स्थिति में लाइसेंस रद्द करने, बाजार से खाद्य पदार्थ वापस मंगाने, प्रतिष्ठान और संपत्ति जब्त करने का आदेश और अन्य मामलों में निषेधाज्ञा जारी करें।
इस प्रकार केंद्र सरकार द्वारा उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य सुरक्षा को देखते हुए एक पुख्ता कानून पारित किया गया है जिसमें ये खास निर्देश हैं कि ठेली वाले हों या दुकानदार सभी को सील बंद सामान बेचना है. खाद्य पदार्थों की सुरक्षा के सम्बन्ध में यह कानून 2006 में बनाया गया किन्तु इसकी पूरी आवश्यकता 2020 में हुई जब कोविड-19 के कारण ज़न साधारण को ही मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया. जगह जगह सफाई और स्वच्छता के लिए सरकार द्वारा दवाईयों का छिड़काव कराया गया. खाने-पीने की चीजों को ढक कर रखने के लिए कहा गया, वातावरण में फैले हुए कीटाणुओं के कारण घर में घुसते ही हाथ साबुन से धोकर ही कोई कार्य करने के लिए कहा गया. कोरोना काल में उपजी हुई परिस्थितियों से ही वातावरण में, पर्यावरण में फैली बीमारियों पर, कीटाणुओं पर नजर गई और उनसे बचाव के लिए ज़न साधारण द्वारा स्वयं के लिए मास्क पहनने और सभी खाद्य पदार्थों को दुकानों पर, ठेलियों पर बिक्री के लिए ढक कर रखने की अनिवार्यता अनुभव की गई जिसके लिए पहले से बनाए गए खाद्य सुरक्षा कानून की कड़ाई सामने जरूर आई है किन्तु अभी भी पालन नहीं हो रहा है, हाल यह है कि सावन में सबसे ज्यादा बिकने वाला घेवर सड़कों पर रेहड़ी पर खुले में ले जाया जा रहा है, ठेली पर खुला रखकर बेचा जा रहा है कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है कि इस तरह से बीमारी के कितने कीटाणुओं को घेवर के साथ व्यापारी वर्ग द्वारा बेचा जा रहा है और उपभोक्ताओं द्वारा खाया जा रहा है. यही नहीं कि केवल घेवर के साथ ऐसा हो रहा है बल्कि कितने ही चाट भंडारों पर खुले में खाद्य पदार्थों को रखकर उपभोक्ताओं को बीमारी के साथ बेचा जा रहा है. ऐसे में यही कहा जा सकता है कि कानून बनाए जाने से ज्यादा उसका अमल करवाया जाना ज्यादा जरूरी है और उत्तर प्रदेश सरकार को यदि उत्तर प्रदेश में दोबारा से कोरोना जैसी महामारी फैलने से रोकनी है तो उसे खाद्य सुरक्षा कानून को सख्ती से लागू करना होगा.
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उत्तर प्रदेश में खाद्य सुरक्षा कानून सख्ती से लागू कराना जरूरी
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली)
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