मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी CrPC की धारा 125 के तहत पति से भरण-पोषण की हकदार-पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि
"एक मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी धारा 125 CrPC के तहत अपने पति से भरण-पोषण (maintenance) मांग सकती है, अगर तलाक के बाद इद्दत अवधि में उसके भविष्य के लिए पति ने “उचित और न्यायसंगत प्रावधान” नहीं किया। "
जस्टिस जितेंद्र कुमार ने फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराया, जिसमें एक मुस्लिम पुरुष को अपनी पत्नी को महीने ₹7,000 देने का निर्देश दिया गया था। पति ने दलील दी थी कि
"उनकी शादी आपसी सहमति (mubarat) से खत्म हो गई थी, "
लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
➡️ मामला संक्षेप में-
पत्नी ने आरोप लगाया कि
" शादी के तुरंत बाद पति की क्रूरता के कारण उसे अपने माता-पिता के घर लौटना पड़ा। उसने कोई आय न होने का हवाला देते हुए ₹15,000 प्रति माह की मांग की। उसने बताया कि उसका पति विदेश में काम करता है और लगभग ₹1 लाख प्रति माह कमाता है। "
पति ने क्रूरता के आरोप को खारिज किया और कहा कि
" शादी 2013 में मुबारत (आपसी तलाक) से खत्म हो गई थी। उसने दावा किया कि उसने पहले ही ₹1,00,000 की राशि एलिमनी, दीन मोहर और इद्दत खर्च के रूप में दे दी है।"
फैमिली कोर्ट ने पति की दलील को खारिज कर दिया और भरण-पोषण देने का आदेश दिया। हाई कोर्ट ने भी फैमिली कोर्ट का आदेश सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि
" आपसी तलाक का दावा सही तरह से साबित होना चाहिए। धारा 125 CrPC की प्रकृति सारांश (summary) होती है, इसलिए शादी की स्थिति का विवाद सीधे इस मामले में नहीं तय किया जा सकता। "
हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि
" अगर तलाक मान भी लिया जाए, तो भी पत्नी को भरण-पोषण मिलना चाहिए। "
कोर्ट ने कहा,
"मान लीजिए कि मि. मुर्शिद आलम ने तलाक दे दिया, तब भी नाजिया शाहीन को अपने पूर्व पति से भरण-पोषण पाने का अधिकार है, क्योंकि यह मामला नहीं है कि उसकी पूर्व पत्नी ने पुनः शादी कर ली हो या पति ने इद्दत अवधि में उसका उचित प्रावधान किया हो।"
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के शाहबानो (1985) और दानियल लतीफी (2001) के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि
" धारा 125 CrPC धर्मनिरपेक्ष है, और यह किसी भी व्यक्तिगत धर्म या कानून से विरोध नहीं करती। मुस्लिम पति की यह जिम्मेदारी है कि जो महिला आत्मनिर्भर नहीं है, उसे तलाक के बाद भी भरण-पोषण मिले। "
न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि
"उचित और न्यायसंगत प्रावधान में रहने का स्थान, भोजन, कपड़े और अन्य आवश्यक चीजें शामिल हो सकती हैं। फैमिली कोर्ट के आदेश में कोई गलती है."
और हाई कोर्ट ने ₹7,000 प्रति माह देने का आदेश बनाए रखा।
आभार 🙏👇
प्रस्तुति
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली )
न्यायसंगत निर्णय बेसहारा पत्नी के लिए
जवाब देंहटाएंसहमत, टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद 🙏🙏
हटाएं